हेलो दोस्तों आज का मेरे इस पोस्ट का टॉपिक है ” शुभ दीपावली “
आज के इस पोस्ट के माध्यम से मैं आप सभी देशवासियों और प्रिय मित्रों को यह बताना चाहता हूं कि शुभ दीपावली की क्या महिमा है यह पावन पर्व क्यों मनाया जाता है और इतने पुरातन काल से दीपावली जैसा पावन पर्व लोग मनाते आ रहे हैं इसके पीछे क्या वजह है
मैं इस पोस्ट को इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि दीपावली जैसे पावन पर्व को हमारे इस समाज में बहुत से लोग गलत तरीके से मनाते हैं और इस पावन पर्व के दिन मदिरा और जुआ खेलकर इस पावन पर्व को मनाते हैं जो कि गलत है और मैं यह पोस्ट इसीलिए लिख रहा हूं की इस पावन पर्व के अवसर पर यह समस्त संसार जगमगाए और यह पर्व समस्त संसार में खुशियां लाए और सभी के जीवन में उजाला लेकर आए सभी का जीवन प्रकाश मय हो उज्जवल हो सुखमय हो और इस लेख से उन सभी गलत लोगों को भी सीख मिल सके जो गलत राह पर है और इस पावन पर्व की महिमा का पता चल सके
महत्वपूर्ण Headings
- दीपावली का त्योहार अपने देश में कब से मनाया जाता है और इसके पीछे का इतिहास क्या है ? ( Why We Celebrate Dipawali )
- अयोध्या में दीपावली कैसे मनाई गई
- श्री रामचंद्र को मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहते हैं
- दीपावली का त्यौहार कैसे मनाया जाता है
- भारत में दीपावली कैसे मनाई जाती है
- रामायण जैसे ग्रंथ से हमें क्या शिक्षा मिलती है
दीपावली का त्योहार अपने देश में कब से मनाया जाता है और इसके पीछे का इतिहास क्या है ? ( Why We Celebrate Dipawali )
समाज के बहुत से व्यक्तियों के मन में इस पावन पर्व को लेकर तमाम प्रकार के गलतफहमियां उत्पन्न हैं और बहुत से लोगों की जिज्ञासा भी होती है कि यह पर्व क्यों मनाया जाता है तो मैं आप सभी प्रिय पाठकों को आज इस पोस्ट के माध्यम से सभी के प्रश्नों का जवाब देना चाहता हूं इस पोस्ट के माध्यम से यह भी बताऊंगा कि इस पर्व को कैसे मनाया जाए इस पर्व की महिमा क्या है और इस पर्व से हमें क्या सीख मिलती है
शुभ दीपावली को मनाने की पावन प्रथा हमारे देश में पुरातन काल से चली आ रही है ऐसा माना जाता है कि सतयुग में माता कैकेई ने महाराज दशरथ जी से दो वर मांगे थे
- पहला वर अपने पुत्र भरत को राजगद्दी
- दूसरा वर प्रभु श्री रामचंद्र जी को 14 वर्ष का वनवास
आज कलयुग के समय में इंसान यदि दूसरे इंसान से कोई वादा करता है तो मुकर जाता है आज के समय में इंसान के बातों की उनके वचनों की कोई अहमियत नहीं है लेकिन मैं आप सभी को बताना चाहता हूं कि सतयुग में एक प्रथा थी कि यदि किसी ने किसी को वचन दे दिया तो उस वचन को वह हर हाल में पूर्ण करते थे इसीलिए कहा गया था
" प्राण जाए पर वचन न जाए"
और उन्हीं वचनों को निभाने के लिए परम पूज्य महाराज दशरथ जी ने अपने प्राणों से प्रिय पुत्र श्री रामचंद्र जी को 14 वर्ष का वनवास दे दिया
और महाराज दशरथ जी ने वचन के मुताबिक प्रभु श्री राम के छोटे भाई को भरत जी को राजगद्दी दे दी
लेकिन उसके बाद गुस्से में महाराज दशरथ जी ने माता कैकेई को यह कह दिया की हे निर्दई कैकेई जाओ मैं तुम्हारा त्याग करता हूं
लेकिन प्रभु का विशाल हृदय तो देखिए पिता के मुख से यह सुनकर कि हे राम मैं तुम्हें 14 वर्ष का वनवास देता हूं रघुनंदन को तनिक भी गुस्सा या दुख नहीं हुआ उन्होंने अपने परम पूज्य पिता की आज्ञा को स्वीकार कर उन्हें वंदन किया और खुशी खुशी वन को जाने के लिए तैयार हो गए और जिस तरह वनवासी वन में वास करते हैं उसी वस्त्र को वे पहनकर वन के लिए रवाना हुए और जाते-जाते अपने पिता श्री से उन्होंने अपने पूजनीय माता जी को माफ करने के लिए कहा जिन्होंने यह वर मांगा था कि राम को 14 वर्ष का वनवास दे दीजिए
और प्रभु श्री रामचंद्र जी के साथ उनकी धर्मपत्नी माता सीता जी और उनके छोटे भाई लक्ष्मण जी भी जाने को तैयार हुए और वे तीनों अपने पिताश्री को चरण वंदन कर वन के लिए रवाना होते हैं
जैसे कहा जाता है कि इस संसार में जो भी होता है वह ईश्वर का किया हुआ है और पहले से रचित है और इंसान अपने कर्मों से सुख और दुख का भोग करता है और जब जब इस धरती पर बाप बढ़ जाता है या किसी बुराई का अंत करना हुआ तो ईश्वर ने अवश्य जन्म लिया है और उन्होंने उस बुराई का अंत कर इस सृष्टि को फिर से एक नया और अच्छा आयाम दिया ठीक उसी प्रकार प्रभु श्री राम जी अपनी पत्नी माता सीता जी और छोटे भाई लक्ष्मण जी के साथ वन को जाते हैं और 14 वर्ष जहां जहां से वे गुजरते हैं जहां भी रहते हैं उन सभी जगह की बुराइयों को खत्म कर आगे बढ़ते जाते हैं और जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते हैं वैसे वैसे उनके समक्ष जो भी बुराइयां आती, कठिनाइयां आती वे उन कठिनाइयों को अपनी कुशलता से अपने बुद्धि विवेक से उन पर विजय पाते गये और दुष्टों का संघार करते गए जैसे-जैसे प्रभु जी आगे बढ़ते गए वैसे वैसे दुष्टों का संहार करते गए बीच में उन्हें कुछ साधु संत भी मिले अच्छे भी मिले और बुरे भी मिले अच्छों से और संत महात्मा से अच्छाइयां ग्रहण की और उनका आशीर्वाद लिया और फिर वन में आगे की ओर बढ़ते गए एक समय ऐसा आया जब प्रभु श्री राम चंद्र जी की जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आया अपने राज्य के किसी दूर छोर पर जब पहुंच चुके थे जिस राज्य का नाम था लंका जहां एक राक्षसों का राज्य हुआ करता था
तब एक रावण नाम का राक्षस पवित्र पतिव्रता माता सीता जी को छल कर साधु के भेष में भिक्षा मांग कर छल से उनको हर ले गया बस यहीं से उस रावण के राक्षस राज्य के विनाश का दिन शुरू हो गया प्रभु श्री रामचंद्र जी ने माता की बहुत खोज की परंतु वे माता का पता ना लगा सके
प्रभु श्री रामचंद्र जी ने लक्ष्मण जी को सदैव माता सीता की रक्षा और सेवा के लिए आज्ञा दिया था और श्री लक्ष्मण जी सदैव अपने बड़े भाई यानी प्रभु श्री रामचंद्र जी की आज्ञा का पालन करते थे जब रावण को माता सीता को छल से हरण करना था उसी के कारण लक्ष्मण जी दुष्ट रावण के छलावें में आकर लक्ष्मण रेखा खींच कर वे भाई के मोह में चले जाते हैं तभी रावण संत का भेष बनाकर माता को हर ले जाता है तब प्रभु श्री रामचंद्र जी कहते हैं कि यह लक्ष्मण तुमने देखा नहीं सीते को रावण कहां और कैसे ले गया तब लक्ष्मण जी ने कहा
हे भैया ! आज तक मैंने भाभी मां का चेहरा नहीं देखा है इतना सुनते ही प्रभु के कमल नयन से अश्रु बहने लगे कि मेरा भाई इतना आदर्श कारी और आज्ञाकारी है
और 14 वर्षों तक प्रभु श्री रामचंद्र जी ने पिता की आज्ञा के अनुसार जैसे एक वनवासी वन में वास करता है उसी प्रकार उन्होंने सिर्फ कंदमूल फल का भक्षण किया
कहते हैं ना कि जो अच्छा होता है उसके साथ अच्छा ही होता जाता है और जो बुरा होता है उनके साथ बुरा ही होता है यदि आपका नियत आपके कर्म अच्छे हैं तो सदैव आपके साथ अच्छा ही होगा ठीक वैसे ही प्रभु श्री रामचंद्र जी को जंगल में एक के बाद एक जैसे जामवंत जी श्री हनुमान जी और कुछ वानर सेना का साथ मिला और सुग्रीव जैसे मित्र मिले और माता सीता का पता लगाने में सफल हुए और बहुत बार रावण को समझाने का प्रयास किया लेकिन वह दुष्ट अहंकारी राक्षस समझ ना सका
और फिर उठाया धनुष और बाण चढ़ाया तरकस पर और उस पापी रावण का वध कर दिया
और जो भी उस राक्षस रावण के साथ था उसके भाई को छोड़कर उन सभी का विनाश कर माता सीता जी को को सम्मान पूर्वक वापस लेकर आए
राक्षस कुल में राक्षस राज रावण का एक भाई विभीषण भी था जो प्रभु का भक्त था सदैव हरि का स्मरण करता था प्रभु श्री रामचंद्र जी ने वादा किया था विभीषण से कि हे विभीषण रावण का वध करने के बाद इस लंका का राज सिंहासन तुम्हें सौंप दूंगा ठीक उसी प्रकार प्रभु श्री रामचंद्र जी ने विभीषण का राज्याभिषेक किया और लंका राज्य को विभीषण को सौंप दिया
प्रभु श्री रामचंद्र जी से मिलने पर वन में जितने भी उनके सहयोगी रहे जो उन्होंने प्रभु से जो भी कहा कुछ लाइनों के माध्यम से मैं आप सभी से कहना चाहता हूं
श्री हनुमान जी ने प्रभु श्री रामचंद्र जी से कहा जब वह लंका जला कर वापस लौटे और माता सीता का पता लगाया
” प्रभु की कृपा सफल भयउ काजु
जन्म हमार सुफल भा आजू”
अर्थात_
श्री हनुमान जी महाराज प्रभु श्री रामचंद्र जी से माता सीता की खोज कर जब आते हैं तो कहते हैं कि आज मेरा जन्म सफल हो गया भगवन जो मैं आपके काम आया
विभीषण जी ने प्रभु श्री रामचंद्र जी से कहा
” अब मोहि भा भरोस हनुमंता
बिनु हरि कृपा मिले नहीं संता “
अर्थात_
मुझे यह विश्वास हो गया “बिना हरि की कृपा से संत का मिलन नहीं होता”
और इस पर्व का पूरा सारांश बताने से पहले यह सब इसलिए आप सब को बताना चाहता हूं ताकि आप सभी प्रिय समाज वासियों और देशवासियों को इस पोस्ट के माध्यम से यह सच्चाई पता चल सके दीपावली अर्थात दीप का त्यौहार क्यों मनाया जाता है
माता कैकेई ने भरत जी के लिए राज्य तो जरूर मांग लिया था लेकिन जिस प्रकार प्रभु श्री रामचंद्र जी ने 14 वर्ष वन में बिताने का निर्णय किया पिता की आज्ञा के अनुसार ठीक उसी प्रकार भरत जी ने अपने भाई के बिछड़ने पर वे राज्य के बाहर 14 वर्ष तक अपनी कुटिया बनाकर रहने लगे और उन्होंने राज्य को चलाने के लिए अयोध्या राज्य के राज्य सिंहासन पर उनके खड़ाऊ को रख दिया था ताकि पूरा राज्य उनके आशीर्वाद और छाँव के नीचे रहे
श्री रामचंद्र जी वन जाने पर सिर्फ प्रभु जी ने ही नहीं बल्कि उनके पूरे परिवार ने शोक संताप और त्याग पूरे 14 वर्ष तक किया
मैंने उस समय को देखा तो नहीं है लेकिन अपने पूर्वजों से और पुरातन किताबों, ग्रंथों से जो सीख मिली और तुलसीदास जी श्री रामचरित मानस जैसे पुस्तक में जो लेख मैंने आज तक पढ़े और सीखें उन्हीं की बिनाह पर यह पाया की जब जब धरती पर पाप बढ़ा और दुष्टों का संहार करना हुआ तब तब ईश्वर ने धरती पर जन्म लिया और दुष्टों का संहार करने के बाद इस संसार का उद्धार किया चाहे वह द्वापर युग रहा हो या त्रेता युग रहा हो या सतयुग रहा हो और एक नए युग के जन्म के साथ आने वाले युग और समाज को एक शिक्षा दी अलग-अलग भेस् मे चाहे वह श्री कृष्ण जी का रूप हो या फिर प्रभु श्री रामचंद्र जी का रहा हो और राह दिखाया की सभी प्राणी जीव अपने जीवन को हर एक परिस्थिति में कैसे निर्वहन करें कैसे जीवन व्यतीत करें परिवार और समाज में कैसा व्यवहार करें और कैसे मोक्ष को प्राप्त करें और कैसे इस समाज का उद्धार हो और कल्याण हो
14 वर्ष की बनवास खुशी-खुशी काटने के बाद प्रभु श्री रामचंद्र जी पुनः वन से पुष्पक विमान से अपने राज्य अयोध्या वापस आने के लिए प्रस्थान करते हैं और इतने लंबे समय के बाद अपने राज्य में प्रभु श्री रामचंद्र जी के आने की खुशी में सभी अयोध्यावासी दीप जलाकर इस त्यौहार को बहुत धूमधाम से मनाएं
अयोध्या में दीपावली कैसे मनाई गई
जब समस्त अयोध्या राज्य के नगर वासियों को यह पता चलता है कि उनके महाराज उनके राज्य के राजा प्रभु श्री रामचंद्र जी वापस वनवास से अपने राज्य को वापस आ रहे हैं तो सभी नगर वासी समस्त राज्य को साफ सफाई कर फूल माला और समस्त ऐसी चीजों से पूरे राज्य को सजा देते हैं और सुसज्जित कर देते हैं और उस रात अमावस्या की रात होती है और उस समय आकाश में पूरा अंधकार होता है सभी सभी नगर वासी पूरे राज्य में अपने-अपने घरों में राज्य के हर एक कोने में दीपक जलाते हैं और पूरे राज्य को प्रकाश मय कर देते हैं जिससे पूरा अंधकार खत्म हो जाता है प्रभु श्री रामचंद्र जी के वनवास के उपरांत अपने राज्य आगमन पर उस दिन को बहुत ही हर्ष और उल्लास से मनाते हैं मिठाइयां बांटते हैं एक दूसरे से मेल मिलाप करते हैं और सब नगरवासी बहुत खुश होते हैं की उन्हें और उनके राज्य को उनके राजा पुनः वापस मिल गए और प्रभु श्री रामचंद्र जी अपने परिवार में वापस आते हैं और वह अमावस्या का दिन होता है तभी से इस अमावस्या के दिन को “शुभ दीपावली के उत्सव के रूप में मनाने का प्रचलन इस समस्त संसार में हो गया
और तब से इस देश में कार्तिक महीने के उस अमावस्या की रात को हर वर्ष “दीपावली” के उत्सव के रूप में मनाया जाता है
श्री रामचंद्र को मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहते हैं
पिता द्वारा कैकई माता को दिए गए वचनों की मर्यादा रखने के लिए श्री रामचंद्र जी ने अपने मित्र, भाई, माता पिता, राज्यवासी सब का त्याग कर दिया था और पिता की वचनों का खुशी-खुशी पालन किया था इसीलिए इन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं
दीपावली का त्यौहार कैसे मनाया जाता है
प्रत्येक वर्ष कार्तिक महीने के अमावस्या की रात को दीपावली के शुभ उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा और उस दिन मां लक्ष्मी श्री गणेश जी और श्री हनुमान जी की मूर्ति पूजा की जाती हो और समस्त जगत में एक दूसरे में खुशियां बांटी जाती हैं मिठाइयां बांटी जाती है और लोग पटाखे फोड़ते हैं और अपने अपने घरों को दीपक से और मोमबत्तीयों से रोशन करते हैं और इस पर्व को एक और नाम से भी जाना जाता है जिसे कहते हैं
” बुराई पर अच्छाई की जीत”
” दीपों का उत्सव दीपोत्सव”
मेरे द्वारा लिखे इस लेख का जो सारांश है वह मैं आप सबके समक्ष रखना चाहता हूं मैंने इस लेख को रामायण काल से इसलिए लिखा ताकि इस पोस्ट को पढ़ने वाले मेरे सभी समाज वासियों को दोस्तों को पता चल सके की दीपावली क्यों मनाई जाती है और इसका संबंध मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के अयोध्या आगमन से क्यों हैं और कुछ रामायण काल से संबंधित बातों को इसलिए लिखा क्योंकि पुरातन काल में जो हुआ उसके बाद ही इस त्यौहार का उपहार इस समाज को मिला
दीपावली के पावन पर्व को दीप उत्सव के नाम से भी जाना जाता है अर्थात दीपोत्सव भी कहते हैं
भारत में दीपावली कैसे मनाई जाती है
दीपावली के आने से पहले इस समाज में इस संसार में सभी के घरों में साफ सफाई होने लगता है चूना कारी होने लगता है और पूरे वर्ष में घर के जिस कोने में सफाई नहीं हुआ रहता है वह कोना भी हमारे समाज का साफ हो जाता है और पूरे समाज में एक नयापन महसूस होता है और ऐसा लगता है की इस समाज में कुछ नया हुआ है कुछ अच्छा हुआ यह बातें एहसास करने की बाते है कि आप जब दीपावली का समय आता है कार्तिक मास आता है तो दिल के भीतर खुद ही एक अच्छा भाव उत्पन्न हो जाता है पर अमावस्या के दिन इस पावन पर्व को मनाया जाता है उस दिन पूरा आकाश अंधकार में डूबा रहता है और समस्त जगत अपने अपने घरों पर छत पर सभी जगह इस समाज को दीप से सजाते हैं और दीप जलाते हैं जिससे घर के हर एक हिस्से में उजाला होता है बुराई पर अच्छाई की जीत का त्यौहार अर्थात दीपोत्सव और दीपावली के नाम से जानते हैं
इस पर्व का संबंध प्रभु श्री रामचंद्र जी से है जिनके कर्मों का उल्लेख रामायण में अन्य ग्रंथ और पुराण श्री रामचरितमानस में उल्लेखित है
रामायण जैसे ग्रंथ से हमें क्या शिक्षा मिलती है
कि प्रभु श्री रामचंद्र जी ने जैसे अपने जीवन काल में अपने सभी बड़ों जैसे अपनी माता अपने गुरु अपने पिता सभी के आज्ञा का पालन किया और अपने पिता के आज्ञा को पाकर खुशी खुशी उनके आदेश का पालन किया वैसे ही हम सभी को भी मर्यादित होना चाहिए और अपने गुरुजनों और माता का पिता का आज्ञा का पालन करना चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए समाज में जो भी गलत हो रहा हो उसके खिलाफ आवाज उठाना चाहिए क्योंकि समाज को सही करने की जिम्मेवारी भी समाज में रहने वाले लोगों की होती है जैसे प्रभु श्री राम ने दुष्ट रावण का संहार किया उसी प्रकार गलत के खिलाफ हम सभी को भी लड़ना चाहिए और
प्रभु श्री राम के जीवन से हम सबको यही शिक्षा मिलता है जीवन के हर एक सुख-दुख को सहन करने की शक्ति होनी चाहिए यदि जीवन में कोई उतार-चढ़ाव या दुख अचानक अगर आ जाता है आपके जीवन में तो उसे ईश्वर की ओर से होनी मानकर और अपने मन को मजबूत कर स्वीकार करना चाहिए और उस परेशानी से सामना करना चाहिए क्योंकि यदि सूर्य उदय होता है तो अस्त भी होता है ठीक उसी प्रकार जब दुख आता है तो उसके बाद सुख भी आता है सदैव इंसान को मर्यादित रहना चाहिए और अपने परिवार की खुशी के लिए हर एक त्याग को तैयार रहना चाहिए
कहते हैं ना कि..
जो होता है वो अच्छे के लिए ही होता है
Artical By – Mohit Jaiswal
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