Q .बफर विलयन तथा उनके महत्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए




 Q .बफर विलयन तथा उनके महत्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए



उत्तर :- अल्प मात्रा में अम्ल या भस्म मिलाने पर जब कोई विलयन अपनी pH के परिवर्तन में प्रतिरोध करता है तो उस विलयन को उभय प्रतिरोधी या प्रतिरोधक या बफर विलयन कहते हैं। पदार्थ या विलयन के इस गुण को उभय प्रतिरोधी क्रिया (buffer action) या उभय प्रतिरोधन (buffering) कहते हैं। विलयनों में यह गुण उनकी निश्चित अम्लीयता या क्षारीयता के कारण होता है। 

बफर विलयन मुख्यत: निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-


1. निर्बल अम्ल में इसका प्रबल क्षार के साथ लवण ऐसीटिक अम्ल तथा सोडियम ऐसीटेट (CH3COOH + CH3COONa) का घोल अम्लीय (acidic) बफर है।


2. निर्बल क्षार तथा इसका प्रबल अम्ल के साथ लवण अमोनियम हाइड्रॉक्साइड तथा अमोनियम क्लोराइड (NH4OH+NH4CI) का घोल भास्मिक (basic) बफर है।


बफर विलयन के मुख्य गुण निम्नलिखित हैं


(i) प्रत्येक बफर विलयन की एक निश्चित pH होती है।

(ii) इनकी pH अधिक समय तक रखने या तनुता से भी परिवर्तित नहीं होती।

(iii) इनमें थोड़ा-सा प्रबल अम्ल या क्षार मिलाने पर भी pH में कोई परिवर्तन नहीं आता या नहीं के समान अन्तर आता है।



बफर की क्रियाविधि :-


 एक अम्लीय बफर की क्रियाविधि निम्न प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं


ऐसीटिक अम्ल तथा सोडियम ऐसीटेट के बफर विलयन में हाइड्रोजन आयन (H+), ऐसीटेट आयन (CH3COO- ) R तथा सोडियम विद्यमान रहता है 


     CH3COOH —CH3COO- +H+

    CH3COONa —CH3COO- +Na+


यदि इस अम्लीय बफर विलयन में HCI अम्ल मिला दें तो उत्पन्न H+ उपस्थित CH3COO- के साथ संयुक्त होकर कम आयनीकृत ऐसीटिक अम्ल बना लेते हैं जिसके फलस्वरूप pH में विशेष परिवर्तन नहीं होता।


                    HCL — H+ Cl-

       CH3COO-+H+ — CH3COOH


यदि उपरोक्त बफर में कुछ NaOH क्षार मिला दें तो उत्पन्न OH- उपस्थित H+ से संयोग कर जल अणु बना लेते है और H+ की पूर्ति के लिये CH3COOH अधिक मात्रा में आयनीकृत हो जाता है।


         NaOH – Na4 + OH-

              H+ + OH-  – H20


अत: कुछ क्षार मिलाने पर भी बफर की pH अपरिवर्तित रहती है। एक भास्मिक बफर की क्रियाविधि निम्न प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं अमोनियम हाइड्रॉक्साइड तथा अमोनियम क्लोराइड के बफर विलयन में अमोनियम आयन ( NH4+ ), हाइड्रॉक्साइड आयन (OH- ) तथा क्लोराइड आयन (CI-) विद्यमान रहते हैं।


        NH4OH — NH4 +OH-

           NH4Cl – NH4 +Cl-


यदि इस भास्मिक बफर विलयन में HCI अम्ल मिला दें तो उत्पन्न H+ उपस्थित OH- के साथ संयुक्त होकर जल अणु बना लेते हैं जिससे pH आरक्षित (अपरिवर्तित) रहती है।


                     HCI  — H+ Cl-

                    H+ OH- —H2O


यदि उपरोक्त बफर में कुछ बूंदें NaOH क्षार मिला दें तो उत्पन्न OH अमोनियम क्लोराइड NH4CI से बने NH+4 के साथ संयोग कर अल्प आयनित NH4OH बनायेंगे।


           NaOH   — Na+  + OH-

           NH4- + OH- —  NH4OH


अत: कुछ क्षार मिलाने पर भी बफर की pH आरक्षित रहेगी।



बफर विलयन का महत्त्व (उपयोग)


 बफर विलयन का महत्त्व निम्नलिखित है—


(i) बफर विलयन वनस्पति तथा जन्तु क्रिया-विज्ञान (physiology) में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। जीवन प्रक्रमों में विभिन्न रासायनिक परिवर्तनों के लिये एक निश्चित pH होती है। हमारे रक्त का माध्यम 7.4 pH पर कुछ क्षारीय होता है।

(ii) ये रासायनिक अभिक्रियाओं के वेग के अध्ययन हेतु pH स्थिर रखते है।

(iii) गुणात्मक विश्लेषण में फॉस्फेट के निराकरण में ऐसीटिक अम्ल तथा सोडियम ऐसीटेट का अम्लीय बफर प्रयुक्त किया जाता है।

(iv) ये विभिन्न उद्योगों; जैसे—कागज, कपड़ा, रंग, चीनी, चमड़ा, विद्युत लेपन आदि में उपयुक्त pH बनाये रखते हैं।



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